बाग़स्याड़ के अपने बचपन के स्कूल में पहुंच भावुक हुए नेता प्रतिपक्ष, छात्रों को सुनाए अपने बचपन के क़िस्से

असफलता से निराश होने की बजाय दुगुने-चौगुने उत्साह के साथ काम में जुट जाएं:

बच्चों से बोले जयराम ठाकुर, जब सफल न हो तो चन्द्रयान मिशन को याद करें

इस माटी का हम पर बहुत क़र्ज़ है, जिसे चुकाना है, पढ़-लिखकर बढ़ाएं देश का मान



मंडी : नेता प्रतिपक्ष अपने बचपन के स्कूल राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय बगस्ययाड़ के अंडर-19 के ज़ोन लेवल की खेल प्रतियोगिता का शुभारंभ किया। अपने बचपन के स्कूल में पहुंचकर नेता प्रतिपक्ष भी भावुक हो गये। उन्होंने छात्रों से अपने बचपन की यादें साझा की। उन्होंने जीएसएसएस बाग़स्याड़ के स्कूल के बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि आज आप जिस ग्राउंड में खड़े हैं, खेल रहे हैं। एक समय हम भी यहीं खेला करते थे। यह वही ग्राउंड हैं, जहां पढ़ाई में कमी रहने पर डांट मिलती थी। कभी-कभी हमें बाहर खड़ा होना पड़ता है। कई बार तो गुरुजनों द्वारा पिटाई भी हुई। यहां पर बहुत सी चीजें सीखीं, जो ज़िंदगी में आगे एक आई। उन्होंने इस खेल प्रतियोगिता का आयोजन करने के लिए एसएमसी को 21 हज़ार रुपए के आर्थिक सहयोग भी दिया। इस मौक़े पर स्थानीय लोगों के साथ, प्रधानाचार्य, शिक्षक और छात्र उपस्थित रहे।



नेता प्रतिपक्ष ने छात्रों से कहा कि खेल हमारे अंदर सामंजस्य और आपसी सहयोग की भावना को मजबूत करता है। हमारे अंदर मिलजुल कर आगे बढ़ने की सीख देता है। उन्होंने कहा कि यह स्कूल का ग्राउंड बहुत छोटा था। जब मैं जन प्रतिनिधि बना और बाद में मुझे मौक़ा मिला तो इस हिमाचल प्रदेश के अन्य स्कूलों के साथ-साथ इस स्कूल का भी कायाकल्प करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि इस मिट्टी का हम पर बहुत क़र्ज़ है। जिसे चुकाना है।



नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि खेल कूद के साथ पढ़ाई भी करनी है। पढ़ लिखकर अपने क्षेत्र, ज़िले और प्रदेश का ही नहीं देश का नाम भी रौशन करना है। जयराम ठाकुर ने छात्रों से कहा कि जीवन में कभी निराश नहीं होना है। अगर आपको एक दो बार में सफलता नहीं मिलती है तो और लगन के साथ मेहनत करना और भारत के चन्द्रयान मिशन को याद करना। कैसे पहले और दूसरी बार में हम सफलता के नज़दीक होते गये। अंतिम समय में मिशन फेल हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैज्ञानिकों को गले लगाया और कहा कि हमें आप सब पर पूरा भरोसा है। आप यह कर सकते हैं। वैज्ञानिकों की मेहनत काम आई और भारत का चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचा। जहां अब तक दुनियां का कोई देश नहीं पहुंचा हैं।

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