हिंदी मातृ भाषा या मात्र भाषा इस पर विचार होना जरूरी: आचार्य देवदत्त शर्मा
र चर्चा की गई। जिसमें उपन्यासकार डा. गंगा राम राजी, वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश धर्मपाल और संतोष गर्ग ने चर्चा की। इस अवसर पर अपने संबोधन में आचार्य देवदत्त शर्मा ने कहा कि आज के इंटरनेट के दौर में भाषाओं का अपभ्रंश हो रहा है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर देखा गया है कि विद्यार्थी भी हिंदी के नाम पर एसएमएस की भाषा का प्रयोग करने लगे हैं। ऐसे में भाषा को परिस्कृत करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आज ये फैशन सा हो गया है कि जिन्हें अंग्रेजी भी ठीक से नहीं आती वे भी दिखावे के लिए कहते हैं कि मेरी हिंदी कमजोर है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी सीखना कोई बुरी बात नहीं है, मगर मैं हिंदी को ही भूल जाऊं ऐसी कौन सी महानता है। अंग्रेजी आगे बढ़े इसमें कोई दिक्कत नहीं है, पर हिंदी क्यों पिछड़े। उन्होंने कहा कि संसार की तीसरी बड़ी भाषा होने के बावजूद हिंदी पर खतरा मंडराया हुआ है। क्योंकि जिसका दिवस मनाना पड़े तो समझ लेना चाहिए उस पर खतरा है। उन्होंने कहा कि हिंदी मातृ भाषा है या मात्र भाषा इस पर विचार करना जरूरी है। इससे पूर्व साहित्यकार दिनेश धर्मपाल ने कहा कि हिंदी विश्व की तीन बड़ी भाषाओं में होने के साथ-साथ साहित्य की सबसे बड़ी भाषा है। उन्होंने कहा कि हिंदी को किसी तरह की बैशाखियों की जरूरत नहीं है। हिंदी के साहित्यकारों की जरूरत है जो वैविध्यपूर्ण साहित्य की रचना कर इसे आगे बढ़ाते रहें। वहीं पर डा. गंगा राम राजी ने कहा कि आज के डर में समाज में डर का माहौल है। उन्होंनें युवाओं को निंरतर आगे बढ़ते रहने का आहवान किया। वहीं पर संतोष गर्ग ने हिंदी साहित्य के इतिहास पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर कार्यक्रम संयोजक संजय नारंग और प्रो. राकेश कपूर ने भी अपने विचार रखे। दूसरे सत्र युवा कवियों के अलावा वरिष्ठ कवियों ने भी अपनी-अपनी कविता का पाठ किया। इस अवसर पर डा. कमल प्यासा, कृष्णचंद्र महादेविया, डा. रवींद्र ठाकुर, रूपेश्वरी शर्मा, हरिप्रिया शर्मा, कृष्णा ठाकुर, निर्मला चंदेल आदि ने भाग लिया