17 सितम्बर,2023

इस वर्ष हिमाचल में प्राकृतिक आपदा से हुए नुकसान और समाधान के मुद्दे को प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों द्वारा वास्तविक नुकसान की भरपाई हेतु अपने साँझा एजेंडे में शामिल किया जाये।
हिमाचल प्रदेश के कई इलाकों में अभूतपूर्व बारिश ने राज्य भर में कहर बरपाया है। अचानक बाढ़, बादल फटना, भूस्खलन, भूमि का धंसना और आबादी वाले पहाड़ी ढलानों का दरकना जैसी चरम घटनाओं ने राज्य भर में जीवन और संपत्ति को तबाह कर दिया है। वर्तमान अनुमान बताते हैं कि राज्य भर में घटित विभिन्न घटनाओं में 404 लोगों की जान चली गई। 38 लोग अभी भी लापता हैं और 377 लोग घायल हुए हैं। इस भारी जनहानि के अलावा 10140 पशुधन की मृत्यु तथा 5644 गौशालाएँ नष्ट हुई हैं। अनेक इमारतों को भारी क्षति हुई है जिसमें 2546 रिहायशी मकान तथा 317 दुकानें पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई हैं। जबकि 10853 रिहायशी मकान आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए हैं। जिससे एक बड़ी आबादी को रहने के लिए वैकल्पिक स्थानों की तलाश करनी पड़ी है।

इस आपदा के लिए तीन चरम दौर (8 से 11 जुलाई, 11 से 14 अगस्त और 22 व 23 अगस्त) और 163 पहचाने गए भूस्खलन स्थल तथा 72 अचानक बाढ़ की घटनाएं अधिकांश प्रभाव के लिए जिम्मेदार रहे हैं। जिसमें कुल्लू, मंडी, शिमला, सिरमौर, सोलन और चंबा जिले सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।
विभिन्न खतरनाक भूस्खलनों और बाढ़ के कारण कृषि और बागवानी भूमि को भारी नुकसान हुआ है। सार्वजनिक संपत्ति को काफी नुकसान पहुंचा है। खासकर ग्रामीण, जिला और राज्य की सड़कें, राष्ट्रीय राजमार्ग, व विशेष रूप से फोरलेन सड़कें प्रभावित हुईं हैं। मंडी से मनाली तक कीरतपुर-मनाली फोरलेन और परवाणू से सोलन तक कालका-शिमला फोरलेन कई स्थानों पर बह गई है। कई सिंचाई और जलापूर्ति योजनाएं भी बह गईं। महत्वपूर्ण इमारतें और स्कूल जैसी सार्वजनिक उपयोगिता वाली इमारतें भी क्षतिग्रस्त हो गईं है। कई जलविद्युत परियोजनाएँ और बिजली की लाइनें क्षतिग्रस्त हो गईं या बंद हो गईं। भूस्खलन से वन भूमि और वनस्पति भी गंभीर रूप से प्रभावित हुई। राज्य सरकार को फिलहाल 12,000 करोड़ रुपये से अधिक के कुल आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाया जा रहा है। इतना भारी नुकसान हिमाचल प्रदेश के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ हैं। इन आकलनों के आधार पर अनुमानतः यह बहुत बड़ी आपदा है और हिमाचल के लिए अपने आप इसकी भरपाई करना संभव नहीं है। इसलिए केंद्र सरकार द्वारा तुरंत इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित की जाये।
हिमाचल प्रदेश राज्य में 2023 मानसून आपदाओं के दौरान उभरने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करने हेतु यह प्रारंभिक विश्लेषण हिमालय नीति अभियान, फोरलेन प्रभावित व विभिन्न नागरिक, सामाजिक संगठनों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं, सेवानिवृत्त लोक सेवकों और वैज्ञानिक समुदाय एवं हिमाचल के जन संगठनों की रिपोर्टिंग के आधार पर संकलित किया गया है। इस विश्लेषण में 28-29 अगस्त 2023 को आयोजित दो दिवसीय वेबिनार श्रृंखला में हुए तार्किक विमर्श व विशेषज्ञों की टिप्पणियां भी शामिल हैं जिसमे विशेष रूप से डॉ. रवि चोपड़ा (निदेशक पीएसआई, देहरादून), डॉ. नवीन जुयाल, (भूवैज्ञानिक), हिमांशु ठक्कर, बांध एवं जल(वैज्ञानिक), डॉ. हिमांशु कुलकर्णी (भू-वैज्ञानिक), श्रीधर राममूर्ति (भूवैज्ञानिक), श्री अभय शुक्ला (पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव,हिमाचल सरकार), राजेंद्र रवि (जनाधिकार कार्यकर्ता), डॉ. ओ.पी. भुरैटा(भू-वैज्ञानिक), एवं हिमाचल के अन्य संगठनो से 45 कार्यकर्ता शामिल रहे ।
समापन टिप्पणियाँ और आगे बढ़ने का रास्ता
1.जो लोग बेघर हो गए हैं और जिनकी आजीविका गंभीर रूप से प्रभावित हुई है, उन्हें जमीन के बदले जमीन और मकान के बदले मकान देने में प्राथमिकता दी जानी चाहिए और राज्य और केंद्र सरकार द्वारा तत्काल कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए। इस संकट को ‘राष्ट्रीय आपदा’ घोषित किया जाये।
2. प्रत्येक प्रकार के भूमि-उपयोग के लिए उचित भूमि-स्थिति के मुद्दे को राज्य की भविष्य की कार्य योजनाओं को वैज्ञानिक आधार पर महत्वपूर्ण एजेंडा बनाया जाना चाहिए। सभी राजनीतिक दलों को भी इसे अपने राजनीतिक एजेंडे में साँझा मसौदे के रूप में शामिल करना चाहिए।
3. बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, बांधों और जलविद्युत परियोजनाओं, फोरलेन व अन्य सड़कों, बहुमंजिला इमारत निर्माण पर कानूनों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए और उनके प्रभावों का वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर निर्माण किया जाना चाहिए।
4. वन अधिकार अधिनियम, 2006 के प्रावधानों के आधार पर वनों के सक्रिय सामुदायिक प्रबंधन, 1980 के वन सरंक्षण कानून में संशोधन के तहत बेघर हुए लोगो को जमीन देने का अधिकार दिया जाये, पारंपरिक आजीविका व्यवसायों और टिकाऊ पर्यटन कार्यक्रमों पर विचार किया जाना चाहिए ।
5. नीति निर्माताओं और समुदायों के बीच व्यापक वैज्ञानिक जागरूकता और संवेदनशीलता का प्रचार निरंतर आधार पर किया जाना चाहिए और प्रदेश का पुनर्निर्माण, पुनर्निवास और पुनर्स्थापना हेतु वास्तविक नुकसान की भरपाई की जाये।

गुमान सिंह, संदीप मिन्हास, जोगिन्दर वालिया, बीआर कौंडल, नरेंद्र सैनी
हिमालयन निति अभियान फोरलेन प्रभावित संघठन भूमिअधिग्रहण प्रभावित मंच

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